हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को बिना आपसी विभाजन के लेना सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 44 के मूल भावना के प्रतिकूल है।
2.
उ. प्र. सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के अन्तर्गत भी यदि अपीलार्थी ने किसी सम्पत्ति को खरीदा है तो वह उसके प्रति पहले से चल रहे दायित्व को भी अदा करने का दायी है।
3.
वाद बिन्दु संख्या-1 व 7 के निस्तारण में इस संबंध में ऊपर निष्कर्ष दिया जा चुका है कि प्रतिवादी के पक्ष में किया गया अंतरण धारा-52 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम से बाधित है।
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दौरान मुकदमा वर्ष 1993 में उसके द्वारा बैनामा लिया गया है, जो धारा 52 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम से बाधित है और उक्त मूलवाद में विपक्षी मुर्तजा हुसैन का पक्षकार बनाया जाना बाधित है।
5.
हाईकोर्ट में मुद्दा था कि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 44 के दूसरे क्लाज के अनुसार अगर कोई सम्पत्ति संयुक्त व अविभाजित परिवार की है तो क्या कोई बाहरी व्यक्ति उसके किसी हिस्से को खरीद सकता है।
6.
धारा 52 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के सम्बंध में उठायी गयी आपत्ति और मुकदमे की बहुत पहले से तृतीय पक्ष को जानकारी थी, इसका कोई उल्लेख विद्वान अवर न्यायालय द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में नहीं किया गया है।
7.
तर्क के लिए यदि वादी ने मूल इकरारनामा भी दाखिल किया होता तो भी सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 54 के प्राविधानों के अनुसार मात्र बैनामा हेतु इकरारनामा करने से किसी सम्पत्ति पर कोई अधिकार सृजित नहीं होता है जब तक कि बैनामा वास्तविक रूप से निष्पादित न किया गया हो।
8.
धारा 52 सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 के अंतर्गत लिस्पेन्डेंस के सिद्धान्त का प्राविधान है, जिसके अनुसार किसी वाद या कार्यवाही के लम्बन की अवधि में वाद के किसी पक्षकार द्वारा किसी सम्पत्ति का अन्तरण नहीं किया जा सकता और इस दौरान किया गया अन्तरण वाद के अन्तिम निर्णय के अधीन होगा।
9.
उक्त इकरारनामा पंजीकृत भी नहीं है तथा सम्बन्धित सम्पत्ति अचल सम्पत्ति है इस आधार पर भी बैनामा सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार विधितः प्रवर्तनीय नहीं है तथा वादी ने भी अपने जवाबुलजवाब कागज सं0 29क में स्वयं यह कथन किया है कि वादग्रस्त भूमि का बैनामा उसने नहीं कराया था आज भी वह बैनामा कराने हेतु तैयार है, अतः उपरोक्त भूमि पर वादी का स्वामित्व सिद्ध नहीं होता है।